जीवन साथी चुनते समय कुछ बातों का रखें विशेष ध्यान, वैवाहिक जीवन होगा सुखमय!

Tips for a happy married life Hindi

विवाह एक ऐसी सामाजिक संस्कृति है जो दो व्यक्तियों के बीच स्थायी रूप से एक संबंध बनाती है। यह एक ऐसी क्रिया होती है जिसमें दो व्यक्ति आधिकारिक रूप से एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं और एक नए जीवन की शुरुआत करते हैं। अगर विवाह के सम्बन्ध में कुछ आवश्यक जानकारी हो तो आप का वैवाहिक जीवन बन सकता है सुखमय

मातृ पक्ष से पांचवी पीढ़ी तक और पितृ पक्ष से सातवीं पीढ़ी तक जिस कन्या का संबंध न हो, उसी से पुरुष को विवाह करना चाहिए।

अगर अज्ञानवश अपने गोत्र या सपिण्ड की कन्या से विवाह हो जाए, तो उसका भोग त्याग कर माता के समान उसका पालन करना चाहिए।
अगर कोई पुरुष उस कन्या के साथ गमन करता है, तो उसकी शुद्धि उस प्रायश्चित व्रत करने से होती है। जो गुरु पत्नी गमन करने पर की जाती है।

धन देकर खरीदी गई स्त्री पत्नी नहीं, दासी कहलाती है। ऐसी स्त्री का और उससे उत्पन्न हुए पुत्र का देवकार्य और पितृ कार्य में अधिकार नहीं होता।

स्वयंवर-विधि से जिन कन्याओं का विवाह हुआ है, वे सभी मसलन सीता, दमयंती, द्रोपति आदि जीवन भर दुखी रही है। अतः स्वयंबर विधि शास्त्रोत होते हुए भी सुखप्रद नहीं है।

एक मंगल कार्य करने के बाद 6 माह के भीतर दूसरा मंगल कार्य नहीं करना चाहिए। पुत्र का विवाह करने के 6 माह के भीतर पुत्री का विवाह नहीं करना चाहिए। एक गर्भ से उत्पन्न 2 कन्याओं का विवाह अगर 6 माह के भीतर हो, तो 3 साल के भीतर उनमें से एक विधवा हो सकती है।

ज्येष्ठ लड़के और ज्येष्ठ लड़की का विवाह परस्पर नहीं करना चाहिए। जेष्ठ मास में उत्पन्न संतान का विवाह ज्येष्ठ मास में नहीं करना चाहिए।

जन्म से सम वर्षों में स्त्री का और विषम वर्षों में पुरुष का विवाह शुभ होता है। इसके विपरीत होने से दोनों का नाश होता है।

विवाह और विवाद हमेशा समान व्यक्तियों से ही होना चाहिए।

बुद्धिमान मनुष्य श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न कुरूप कन्या के साथ विवाह कर ले, पर नीच कुल में उत्पन्न रूपवती सुलक्षणा कन्या के साथ भी विवाह नहीं करना चाहिए।

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